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धुँआ (24) / हरबिन्दर सिंह गिल

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क्या ये धुऐं के बादल भी पेशेवर हैं
वैसे ही जैसे होते हैं, पेशेवर खूनी
या होते हैं जैसे पेशेवर तस्कर
या जिनका व्यवसाय होता है, पेशेवर दलाल
या फिर समाज के पेशेवर चोर और डाकू ।

हाँ इन धुऐं के बादलों को
यदि कहे पेशेवर खूनी
कोई भी नहीं करेगा इंकार ।
सड़को पर पड़े खामोश शव
बहुत हैं कहने को
हम नहीं मरते बेमौत
अगर ये पेशेवर बादल न होते ।

हाँ, ये झूठे गवाह भी है
जो समाज में, भरे चौराहों पर
डंका बजाकर घोषणा करते हैं
धर्म संकट में है ।
जबकि संकट में थे, हित उस अपराधी के
जिसने उन्हें भेजा या चौराहों पर ।

यदि हम कहते हैं, ये बादल
पेशेवर तस्कर हैं, इसका भी सबूत है
जंगलो में रहने वाले फकीर
वातानुकूलित घरों में अपना डेरा न डालते ।

अब प्रश्न उठता है क्या ये बादल
पेशेवर दलाल भी हैं
बिना झिझक हम हाँ कहेगें
नहीं तो मानवता के खूनी
हमेशा कैसे खून कर जाते ।

बादलो को हम कहें, चोर या डाकू
कोई अंतर नही पड़ता
क्योंकि मानवता की पूंजी
जो इन धर्म ग्रंथों में संचित है
लुटती जा रही है, दिन-प्रतिदिन ।

यदि ये धुऐं के बादल इतने पेशेवर गुनाहगार हैं
हमें इनके पेशे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होगा
इससे पहले के ये बादल पेशेवर वैश्या का रूप ले लें
इन्हें पूर्ण सामाजिक बनाना होगा ।