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धुँआ (36) / हरबिन्दर सिंह गिल

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यह धुँआ बड़ा विचित्र है
जिसमें कई रंग भरे हैं
इन्हे नाम दूँ, इन्द्र धनुष का
या कहूँ, है रंग गिरगिट का ।

इस धुएँ के जन्म का कारण
मानव की धर्म के पीछे अंधी दौड़ है
परंतु भगवान ने धर्म
इसलिए, नहीं बनाया कि मनुष्य बनाऊँ
और उसे जगह दूँ स्वर्ग या नरक में ।

यदि ऐसा होता वो खुद ही
दो दुनिया बना देता, परंतु नहीं किया ।
उसने धर्म बनाया, मानवता के लिए
पूजास्थल बनाये, उसने पूजन के लिए
और मानव बनाया, ब्रह्मांड को सुगंधित करने के लिए
न कि दूषित करने के लिए धुएँ से ।