भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धुँआ (7) / हरबिन्दर सिंह गिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस धुएँ का प्रहार
बहुत प्रचंडित है ।

जरा ताडंव देखो इस नृत्य का
सरे आम कर नग्न स्त्री को
बलात्कार कर दिया जाता है
और फिर उस असहाय अबला को
वैसे ही मुद्रा में छोड़ दिया जाता है ।

यह सब इस लिए हुआ
क्योंकि उस स्त्री ने
पर धर्म के मानव को दिया था जन्म ।