भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धुँधलका / देवेन्द्र कुमार
Kavita Kosh से
शाम हुई चेहरा दहका
क्या कोई टमाटर पका !
धूप के चुनौटे घर में
खिड़की, दरवाज़े जन्में
चौके का माथा ठनका ।
कुछ इकरंगे, कुछ धागे
कटे खँसी का सिर आगे
मण्डप में मचा तहलका ।
घर को खरगोश मुड़ रहे
पेड़ों के होश उड़ रहे
घुँघरू-सा बजा धुँधलका ।