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धुंध / नीना कुमार
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धुन्ध की दीवार से घिर गया है घर,
उठ खड़ी हुई फिर इक सुबह बेमहर
मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> हो धूप की, कहो क्या तुम अभी
मुस्करा रहे हैं बादल, हम से ये पूछ कर
हर गुल है शबनमी, बर्फ बर्फ सी है सबा,
मौसम-ए-सर्द में हो गई है दीदा-ए-तर<ref>भीगी आँखें</ref>
हंगामा-ए-वीरानियाँ, दश्त-ए-खामोशियाँ
ख्वाब सा हुआ अजनबी मेरे ख्याल का शहर
अंजाम-ए-आग़ाज़ एक परबत-ए-याद है
उस पार कहीं उफ़क़ पर है कोई नया दहर<ref>दुनिया</ref>
शब्दार्थ
<references/>