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धुंध / रेखा
Kavita Kosh से
अचानक
चौंकती हूँ स्वप्न में
लगता है द्वार पर हुई दस्तक
सहसा
घाटी से धुंध
आकर लिपट जाती गिर्द
क्या तुम आओगे इसी तरह?