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धुआँ बन-बन के उठते हैं हमारे ख़्वाब सीने से / सिया सचदेव

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धुंआ बन बन के उठते हैं हमारे ख्वाब सीने से
परेशान हो गए ऐ ज़िन्दगी घुट घुट के जीने स

हमें तूफ़ान से टकरा के दो दो हाथ करने हैं
"जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से"

चले तो थे निकलने को, पलक पर थम गये आंसू
छुपाए हैं हज़ारों दर्द ये बेहद करीने से।

दुआ से आपको अपनी वो मालामाल कर देगा
लगाकर देखिए तो आप भी मुफलिस को सीने से

मुझे रोते हुए देखा, दिलासा यूँ दिया माँ ने
उतर आएगी आंगन में परी चुपचाप जीने से

अगर होता यही सच तो समंदर हम बहा देते
'सिया' होगा न कुछ हासिल कभी ये अश्क पीने से