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धुआँ / हंसराज
Kavita Kosh से
एकटा हरियर गाछ सुखा गेल
यूकेलिप्टसक छीप परसँ पिछड़ल हरियरी
आ चमकैत गरूत्वाकर्षण-बलें
धरतीमे समा गेल
आ, हरियरी बिला गेल।
हमरा लोकनि गबैत छी गीत नव-नव
पबैत छी सुख-सुविधा अभिनव
करैत छी भोग,
रहैत छी कुण्ठित, बुझैत छी तुष्टि
आ सुझैत अछि साओन-भादव।
आएल छल बाढ़ि कामलामे परूकें जकाँ
लधलक नहि बदरी मुदा
जेठक रौद ओहने आसिनक इजोरिया
कदम नहि फुलाएल मुदा पीयर
गाछो तँ सुखा गेल।
अपन दुमहलाक कोठलीमे बैसल
खिड़की द’क’ देखैत छी, अझक्के
हरियर बाधकें, ‘धुआँ, धुआँ !’