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धुएँ, पानी, धूप और हवा का / कालिदास
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धूमज्योति: सलिलमरुतां संनिपात: क्व मेघ:
संदेशार्था: क्व पटुकरणै: प्राणिभि: प्रापणीया:।
इत्यौत्सुक्यादपरिगणयन्गुह्यकस्तं ययाचे
कामार्ता हि प्रकृतिकृपणाश्चेतनाचेतनुषु।।
धुएँ, पानी, धूप और हवा का जमघट
बादल कहाँ? कहाँ सन्देश की वे बातें जिन्हें
चोखी इन्द्रियोंवाले प्राणी ही पहुँचा पाते हैं?
उत्कंठावश इस पर ध्यान न देते हुए
यक्ष ने मेघ से ही याचना की।
जो काम के सताए हुए हैं, वे जैसे
चेतन के समीप वैसे ही अचेतन के समीप
भी, स्वभाव से दीन हो जाते हैं।