धुली चाँदनी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
121
दुआएँ साथ
विरोधी हों मौसम
डरा न पाएँ ।
122
शाप जो देते
वे कुछ भी न पाते,
बाँटो दुआएँ ।
123
तुम सुकून
जीने का हो जुनून
प्राणों में बसी ।
124
खुशबू भरी
हर बात तुम्हारी
फूलों की क्यारी ।
125
बनों सूरज
सपनों में मन का
उजाला भरो ।
126
धुली चाँदनी
जब तुम मुस्काए
हरसे नैन ।
127
जीवन सारा
बन गया गौमुख
दुःख ही बहा ।
128
फूल न मिले
काँटो से ही हमने
बदन सिले ।
129
वश में होता
सीने में छुपा लेते
दर्द तुम्हारे।
130
छू लेते माथा
पीड़ा का सागर भी
पूरा प़ी जाते ।
131
साँपों के बिल
सेज रही अपनी
सोते भी कैसे ?
132
कसीदे काढ़े
चुप्पी के अनगिन
पिरोई साँसें ।
133
हुई है भोर
दानों की तलाश मे
कुंजों की डार।
134
परछाइयाँ
पीछा नही छोड़ती
ज्यों तन्हाइयाँ ।
135
पेंग बढ़ाए
मन ही मन गाए
भोली बिटिया ।