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धूधर सी वन, धूमसी धामन / बेनी
Kavita Kosh से
धूधर सी वन, धूमसी धामन, गावन तान लगै नर बोरी।
बौरी लता, बनिता भई बौरी, सु औधि अध्याय रही अब थोरी॥
'बेनी बसंत के आवत ही बिन कंत अनंत सहै दुख कोरी।
ओरी! घरै हरि आए न जो, पहिले हौं जरौं, जरिहै फिर होरी॥
राधा औ माधो खदोउ भीजत, बा झरि में झपकै बन मांहीं।
'बेनी गए जुरि बातन में, सिर पातन के छतना गल बांहीं॥
पामरी प्यारी उत प्यारे को, प्यारौ पितंबर की करै छांहीं।
आपस में लहालेह में, छोह में, का को भीजिबे की सुधि नांहीं॥