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धूप-दीप की गंध सुहानी / रेनू द्विवेदी

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धूप-दीप की गंध सुहानी,
नित उमंग भरती है!
उदयाचल की पावन बेला,
मन हर्षित करती है!

वेद-मन्त्र के उच्चारण से,
दिव्य सृष्टि हो जाती!
सूर्य रश्मि के मधुर छुवन से,
वसुधा नित मुस्काती!

उषा लालिमा रात्रि देखकर,
यो लगता डरती है!
उदयाचल की---

मुक्ता जैसी लगती शबनम,
फूलों के अधरों पर!
एक खुमारी चढ़ जाती है,
उपवन में भँवरों पर!

कल-कल ध्वनि नदियों की प्रतिदिन,
पीर सभी हरती है!
उदयाचल की---

सिंदूरी पूरब के पर्वत,
अतिमनमोहक लगते!
इनके पीछे सूरज दादा,
छिपते और निकलते!

चिडियों के कलरव से जैसे,
पुलक गयी धरती है!
उदयाचल की---