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धूप-दीप / मंजुला सक्सेना
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तुम दीपक से जलो और मैं बन धूप मिट जाऊँ
तुम प्रकाश भर दो जीवन में मैं सुगंध बन जाऊँ ।
धरती के उर में ज्वाला है और देह में सुरभि
जब प्रकाश अंतर्मन में हो जीवन होता सुरभित
जीवन चन्दन वन-सा महका जब उर में तुम आए
उद्भित मैं तेरे ही उर से, जीवन-राग सुनाए ।
तुम मधुबन तो मैं सुगंध, तुम बनो गीत मैं गाऊँ
मैं रचना तेरी ही तुझ में रचूँ, बहूँ, मिट जाऊँ ।
रचनाकाल : 24 फ़रवरी 2009