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धूप/ रामकिशोर दाहिया
Kavita Kosh से
बादलों की बोरियों से
तुलतुलाती धूप
राह गलियों खोरियों में
छुलछुलाती धूप
झील-झरने नद-सरों को
स्वर्ण किरणें ढक रहीं
फूल का केसर उठाकर
पत्तियों पर रख रहीं
द्वार पर लड़की ठिठक कर
खिलखिलाती धूप
सेम, परबल, बर्बटी पर
तितलियों -सी झूलती
धूप दिन भर बाग-वन में
गुलमुहर-सी फूलती
आँवले, अमरूद ऊपर
तिलमिलाती धूप
साँझ सरकी सांँप बनकर
रेत वन चट्टान से
पेट सेकर लौट आई
खेत औ' खलिहान से
घोंसलों में सिमट बैठी
कुलबुलाती धूप
-रामकिशोर दाहिया