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धूप एक एहसास / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
तुम्हारे आसपास की
ऊष्मा सी
शिशिर की कुनकुनी धूप
लिपट रही है रोयेंदार शॉल सी
मेरे कांपते जिस्म के
आसपास
मन कबीर हो उठा है
बुनने लगा है
धूप के धागों से
ख्वाबों की चदरिया
आज आसमान मेहमान हुआ
धूप के वितानों का