भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप ऐसी तेज़ धूप गर्म है फ़ज़ा बहुत / नियाज़ हैदर
Kavita Kosh से
धूप ऐसी तेज़ धूप गर्म है फ़ज़ा बहुत
मिलेंगे छाँव ढूँढते बरहना-पा ख़ुदा बहुत
ये राह बे-कनार बे-पनाह ख़िज्र की फ़ुगाँ
बहुत मिली थी ज़िंदगी मगर मिली ज़रा बहुत
ख़ज़ाँ नसीब दौर में बहार की तसल्लियाँ
मगर वो दिल जिसे है ख़ार-ओ-ख़स का आसरा बहुत
उन्हें ख़बर करो कि शाम-ए-हिज्र आ रही है फिर
जिन्हें वफ़ा-ए-अहद पर ग़ुरूर ओ नाज़ था बहुत
फ़रेब-ए-आरज़ू पे और ए‘तिबार के लिए
उठाओ जाम वक़्त कम है वक़्त हो चुका बहुत