धूप और जड़ों के बीच / राजकुमार कुंभज
सूने आकाश में / पुकार होते-होते
कैसे पहुँचती है एक चिड़िया / सूने आकाश तक?
कभी नहीं जान पाया / कोई / इस संसार में
लेकिन / जानती है कविता
कि जब भी एक चिड़िया / शुरू करती है / उड़ना
तो उसके सीने में / समूची पृथ्वी का साहस होता है
संगीत की प्रसन्नता से लबरेज / सपने होते हैं
और होती है / प्रेम करने की अनंत-इच्छा
धूप / और / जड़ों के बीच
ख़बसूरत मायाजाल की तरह / फैली है अफ़वाहें
उन अफ़वाहों का / अंतिम संस्कार / करती है चिड़िया
अपने पंखों से चीरती है वह / संगीन का आतंक
एक चिड़िया की बदौलत ही / पकती है फसल
चट्टान पर चोट करने का इरादा
मनुष्यों में / भरती है एक उड़ती हुई चिड़िया
चिड़िया की उड़ान में / मनुष्यों की उड़ान है
अगर / कुछ भूलते हैं लोग तो याद करवाती है चिड़िया
जैसे कि उड़ान और आग / कभी नहीं थकती
सूने जंगल में / प्रणय होते-होते
कैसे पहुँचती है एक चिड़िया / सूने जंगल तक?
कभी नहीं जान पाया / कोई / इस संसार में
रचनाकाल : 1990