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धूप का गीत / केदारनाथ अग्रवाल
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धूप धरा पर उतरी
जैसे शिव के जटाजूट पर
नभ से गंगा उतरी ।
धरती भी कोलाहल करती
तम से ऊपर उभरी !!
धूप धरा पर बिखरी !!
बरसी रवि की गगरी,
जैसे ब्रज की बीच गली में
बरसी गोरस गगरी ।
फूल-कटोरों-सी मुसकाती
रूप भरी है नगरी !!
धूप धरा पर निखरी !!