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धूप का जो सर उतारे जाओगे / दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी'

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धूप का जो सर उतारे जाओगे
बर्फ़ के चाकू से मारे जाओगे

अब मुँडेरों से उठो आगे बढ़ो
क्या ख़ुदा को ही पुकारे जाओगे?

सुर्ख़ आँखें शह्र में फिरने लगीं
कब तलक ज़ुल्फ़ें सँवारे जाओगे

कर रहे हो आज जिनका इफ़्तिताह<ref>उद्घाटन</ref>
कल उन्हीं राहों पे मारे जाओगे

यूँ बिखर कर दुश्मनों से मत लड़ो
वरना चौराहों पे मारे जाओगे
 

शब्दार्थ
<references/>