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धूप का दर्शन / राग तेलंग
Kavita Kosh से
मृत्यु का भय उस धूप को नहीं था
जो जीवन भर
हम सबकी अनंत इच्छाओं के गीले कपड़े सुखाती रही
न ही बताया
उतने पानी का भार
हिम्मत के उस तार ने
जिस पर सूखते थे वे कपड़े
जो होते पहले भारी
फिर उतारते वक़्त मिलते हल्के
इस तरह
हमारी गीली इच्छाओं का पानी
उड़कर पहुँचा उम्मीदों के बादल तक
हम सबने कुछ नहीं देखा
हमने सिर्फ़ इतना जाना
मृत्यु को एक दिन
शरीर में से होकर गुज़रने देना होगा
इसमें हर्ज़ ही क्या
अगर तब तक हम
अपने हिस्से की धूप का मज़ा ले लें ।