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धूप की लकीर / राकेश कुमार पटेल
Kavita Kosh से
खुले आसमान के नीचे
टाट-पट्टियों पर बिछा है स्कूल
पेड़ों से छनकर आती है
जहाँ झीनी-झीनी धूप
बगल में खड़ी है भगेलू की झोपड़ी
जिसकी मिट्टी की दीवाल पर
पक्की ईंट के टुकड़े से
रगड़कर खीची गई है लकीर
और बालमन की हठीली सहमति है कि
स्कूल का घंटा आखिरी बार
ठीक उसी समय बजता है
जब ढलते सूरज की कमजोर पीली धूप
ठीक उसी लकीर पर आकर ठहर जाती है
और बच्चों का झुंड
अपने बस्ते पीठ पर लादे
घर की तरफ दौड़ पडता है!