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धूप के निशान / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
दिया जले
मन मचले
सुधियों के तले-तले
एक रूप क्या उभरा — छन्द के समान
फैल गए धूप के निशान ।
वनवासी मन के त्योहार
कस्तूरी गन्ध में नहाए
अम्बर के अभिनन्दित गीत
उजली पोशाक पहन आए
थके-थके
जीवन के
वनपंखी स्वर चहके
रेखाएँ खींच गए — धुँधले अनुमान
फैल गए धूप के निशान ।