Last modified on 13 मार्च 2018, at 22:59

धूप को सर पर लिये चलता रहा / अनिरुद्ध सिन्हा

धूप को सर पर लिये चलता रहा
मैं ज़मीं के साथ ही जलता रहा

नफ़रतों के जहर पीकर दोस्तो
प्यार के साँचे में मैं ढलता रहा

टूटकर इक दिन बिखर जाऊँगा मैं
मेरे अन्दर खौफ़ ये पलता रहा

लौट आया आसमां को छूके मैं
जलनेवाला उम्र भर जलता रहा

लोग अपनी मंज़िलों को हो लिये
वो हमेशा हाथ ही मलता रहा