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धूप जब कोहसार पर आई / रोशन लाल 'रौशन'
Kavita Kosh से
धूप जब कोहसार पर आई
चाँदनी भी मज़ार पर आई
शक का इक शब्द बीच में आया
बात जब ऐतबार पर आई
अधमरी, बदहवास और निढाल
ज़िन्दगी मेरे द्वार पर आई
अश्क़ मेरे थे कहकहे उनके
बात जब इख्तियार पर आई
आदमी के पतन की हर तोहमत
एक अनपढ़ गँवार पर आई
रफ़्ता-रफ़्ता सही समझ 'रौशन'
तथ्य की रहगुज़ार पर आई