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धूप न निकली आज/ नागेश पांडेय ‘संजय’

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धूप न निकली आज,
कहीं बीमार तो नहीं?

सुबह-सुबह आ जाती थी
इतराती-इठलाती थी,
कभी आग बरसाती थी
जो हो, मन को भाती थी।

किए बेतुके काज,
मगर हर बार तो नहीं,
धूप न निकली आज,
कहीं बीमार तो नहीं?

क्यों की आनाकानी है?
कोई कारस्तानी है,
ये इसकी मनमानी है,
या फिर और कहानी है।

मिली सूर्य से कहीं
डाँट-फटकार तो नहीं?
धूप न निकली आज,
कहीं बीमार तो नहीं?