भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप भी मुझको गुलमोहरी-सी लगे / उषा यादव उषा
Kavita Kosh से
धूप भी मुझको गुलमोहरी-सी लगे
प्यार में ज़िन्दगी कुछ भली-सी लगे
मन की पीड़ाएँ ग़ज़लों में कितनी ढलीं
बात फिर भी कई अनकही-सी लगे
दिल में सन्नाटों का यूँ बसन्त आया है
दिल के बाहर भी इक ख़ामुशी-सी लगे
दर्द सारे जहॉं का समेटे हुए
ग़ज़लों की आँखों में कुछ नमी-सी लगे
इस तरह अश्कों से आँखें लबरेज़ हैं
जैसे आषाढ़ की इक नदी-सी लगे
इस क़दर दिल में बेताब है इन्तज़ार
आती आहट उषा हर घड़ी-सी लगे