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धूप में सारा दिन जो जलता है / शुचि 'भवि'

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धूप में सारा दिन जो जलता है
भूख घर से लिए निकलता है

एहतियातन जिगर में नरमी रख
प्यार जमकर कहाँ पिघलता है

खिड़कियाँ घर में आज होतीं तो
देख पाते वो कब निकलता है

वो तो बेशक पिघल गया है मगर
देखिये वक़्त कब पिघलता है

हाथ 'भवि' चूमता है वो मेरे
लम्स से जिसके दिल मचलता है