भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धूप में / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


भाग रहा है समय
जीवन छूट रहा है

इस वृक्ष की शाखाएं
टूट चुकी हैं

किस छांह में बैठूं
तनिज जी लूं

मेरी परछाई धूप में जल रही है