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धूप में / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
भाग रहा है समय
जीवन छूट रहा है
इस वृक्ष की शाखाएं
टूट चुकी हैं
किस छांह में बैठूं
तनिज जी लूं
मेरी परछाई धूप में जल रही है