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धूप रात माटी / शैलेन्द्र चौहान
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बहुत सारे दर्द को अहसासती
तुम साथ मेरे चल रही हो
- जुड़ गई हर मुस्कान
- मुझसे तुम्हारी
- नींद में अलसाती मदमाती
- बेखबर
- फिर भी जुड़ी हो इस तरह
- जैसे फूलों में महक
- चमक तारों में
- आहिस्ता-आहिस्ता
- पाँव घिसटाती चल रही हो
- तुम ---
- धूप,रात,माटी
- और मौसम
- कितने सलौने
- सब ठुकराती चल रही हो
- तुम साथ मेरे चल रही हो