धूप होगी बारिशें होती रहेंगी / प्रेमरंजन अनिमेष
धूप होगी बारिशें होती रहेंगी
आदमी की कोशिशें होती रहेंगी
चाह कर भी राह में रुक पाओगे कब
हर क़दम पर साज़िशें होती रहेंगी
बँट गयी धरती घिरा आकाश लेकिन
होने की गुंजाइशें होती रहेंगी
रूह जो भीतर ज़रा उसको सँवारें
और तो आराइशें होती रहेंगी
कह रहा हूँ और न कोई सुनने वाला
उठने पर फ़रमाइशें होती रहेंगी
हैं तो कोई झाँकने आता कहॉं है
जाएँगे तो पुर्सिशें होती रहेंगी
सिर्फ कोई प्यार की धड़कन न होगी
जिस्म है तो जुबिशें होती रहेंगी
चाहने वाले नया कब कर न गुज़रें
कब न थीं हैं बन्दिशें होती रहेंगी
आदमी कैसे रहेगा आदमी फिर
पूरी गर सब ख़्वाहिशें होती रहेंगी
साथ मिलकर काट लें ये रात 'अनिमेष'
याद पिछली रंजिशें होती रहेंगी