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धूप / मुस्कान / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यह कैसा चक्कर है चला रही धूप।
खेत गली आँगन सब जला रही धूप॥
झुलस रहे फूल कली गर्म है हवा,
मुरझाये पौधे धरती बनी तवा।
कितनी दुखदायी बन बला रही धूप।
खेत गली आँगन सब जला रही धूप॥
पशु पक्षी गर्मी से बिलबिला रहे,
सूखते तलाब गढ़े दिल हिला रहे।
प्यासी है दुनियाँ चिलचिला रही धूप।
खेत गली आँगन सब जला रही धूप॥
जीभ किये बाहर पशु हाँफ रहा है,
चुआ जो पसीना बन भाप रहा है।
दिखा आज यह कैसी कला रही धूप।
खेत गली आँगन सब जला रही धूप॥