भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप / सरस्वती माथुर
Kavita Kosh से
1
चंचल धूप
हवा घोड़े पे बैठ
उड़ती फिरे
2
जागा सूर्य तो
धोया था सुबह ने
धूप से मुंह
3
धूप गोरैया
फुदक आंगन में
चढ़ी मुंडेर
४
धूप किरणें
फेनिल लहरों में
स्नान करतीं
5
तपा आकाश
नभ से छिड़कता
धूप की बूँदें
6
धूप पतंग
साँझ के कंधे पर
अटक गयी
7
रात स्याही
भोर के कागज पे
धूप कलम
8
धूप की कूची
चित्रकारी करता
गर्मी का दिन
9
निठूर बड़े
गर्मी के दिन आये
धूप करारी
१०
धूप के मोती
तरु गले लटके
माला के जैसे