भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूल चढ़ी सरकारी फ़ाइल / योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
Kavita Kosh से
किसको चिन्ता किस हालत में
कैसी है अब माँ
सूनी आँखों में पलती हैं
धुँधली आशाएँ
हावी होती गई फ़र्ज़ पर
नित्य व्यस्तताएँ
जैसे ख़ालीपन काग़ज़ का
वैसी है अब माँ
नाप-नापकर अँगुल-अँगुल
जिनको बड़ा किया
डूब गए वे सुविधाओं में
सब कुछ छोड़ दिया
ओढ़े-पहने बस सन्नाटा
ऐसी है अब माँ
फ़र्ज़ निभाती रही उम्र-भर
बस पीड़ा भोगी
हाथ-पैर जब शिथिल हुए तो
हुई अनुपयोगी
धूल चढ़ी सरकारी फाइल
जैसी है अब माँ