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धूसर गोधलि लग्न में सहसा देखा एक दिन / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
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धूसर गोधलि लग्न में सहसा देखा एक दिन
मृत्यु दक्षिण बाहु जीवन के कण्ठ में लिपटी है,
रक्त सूत्र से बँधी है ;
उसी क्षण पहचान गया जीवन और मरण को।
देखा फिर, ले रही यौतुक है मरण वधू, वर का जो चरम दान;
दाह ने हाथ में लेकर उसे चली है वह युगान्तर को।
‘उदयन’
प्रभात: 4 दिसम्बर