धू धू धू / सुरेश विमल

फरर फरर फर चलती लू
जलती धरती धू-धू धू।

रात हुई बित्ते भर की
दिन कहता ना अभी टलूं।

बिन पानी कर अकुलाए
पिल्ले करते हैं कूँ-कूँ।

पंछी जाने कहाँ छिपे
बंद हो गई चां चीं चूं।

गली-गली वीरान हुई
करे दुपहरी भूं-भूं भूं

खर्राटे से घर गूंजे
बोले पंखे घूँ-घूँ घूँ।

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