भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धृष्टता / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
आज तुम्हारे सीने में नहीं
तुम्हारी हथेली में
धड़का
तुम्हारा दिल
और
अपनी हथेली में दुबकाए
उसे ले आया मैं
अपने साथ ।