भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धैर्य-सागर / बलदेव वंशी
Kavita Kosh से
घोर घावों-से फटे अभावों में भी
उत्सवी भवों को
जीने का मछुआरा स्व-भाव !
यही है तुम्हरा कमाल दुस्साहसी
जो तुमने क्षण-क्षण सिखलाया
नहीं तो
सागर-पुत्र ये मछुआरे
अपनी फटी कथरियों में
धैर्य (तटों) से (बंधे)
इतने मालामाल न होते !
कि लोग उनके सामने
उनके रक्त के कुल्ले करते
अपने हाथ-पाँव धोते
और वे सिर्फ़
टुकुर-टुकुर देखते होते !