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धोखा / स्वरांगी साने
Kavita Kosh से
— कोहनी टिकाए बैठी थी
कि मेज़ पर गिर पड़ी दो बून्दें
धोखा खा गए थे मेरे आँसू
वो तुम नहीं थे तुम्हारी छवि थी
जिसके बाहर हूँ मैं
तुम्हें देखती हुई
जिसके भीतर हो तुम कहीं और देखते हुए