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धोबिया हो बैराग / कबीर
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धोबिया हो बैराग।
मैली हो गुदरिया धोबिया धो दा हो॥टेक॥
कथि केरो किलवा, कथि केरो पाट।
कहाँ बसै धोबिया, कहाँ लागल घाट॥1॥
मन केरो किलवा, सुरत केरो पाट।
हे रे दइवा वही धोबिया, तिरबेनी लागल घाट॥2॥
लाया धोबिया गुदरी पुरान।
धोइते-धोइते धोबिया भइ गेलै हरान॥3॥
कहत कबीर गुदरिया केरो भाग।
मिली गेलै सतगुरु छूटी गेलै दाग॥4॥