भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धोरां-धोरां पाणी रो धोखो है / सांवर दइया
Kavita Kosh से
धोरां-धोरां पाणी रो धोखो है
हर सांस आस-राणी रो धोखो है
मन म्हारा गूंथ मत नित नुंवा धागा
औ जग आणी-जाणी रो धोखो है
समंदर री लहरां गिणतो सोचूं म्हैं
पाणी नै ई पाणी रो धोखो है
अमर पळ आसी पाछो हाथ थारै
राजा नै तो राणी रो धोखो है
सूरज आंधो होयग्यो सड़कां माथै
गांव गळी अर ढाणी रो धोखो है