भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धोरां रो धणियाप / सांवर दइया
Kavita Kosh से
म्हारै च्यारूंमेर
धोरा ईं धोरा
धायोड़ां नै लखावै
सोनै वरणा
भूखां नै
पीळीयै में पड़ियै टाबर-सा
आं धोरां रो धणियाप
म्हारी सांसां माथै
आ तो
आंरी मरजी
रोसै
का पोखै म्हनै !