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धोलो-पंखेरू / कुंदन माली
Kavita Kosh से
जिण वखत उणने
कोई देखणो इज नीं चावैं
वो उण वखत पण
दिख जाव
जिण ठिकाणे उणने
कोई राजीखुसी नीं बुलावै
वो वठै पण
टिक जावै
जाण बजार में उणने
कणी भाव इज नीं पूछै
वो वठै पण
हाथूं हाथ बिक जावै
जिण संगत में वो
लोगां ने फूटी आंख नीं सुहावै
वठै पण वो
मनचायो बोल जावै
जिण मोकै उणरी
कोडी बरोबर पूछ नीं हुवैं
उण मोकै पण वो
ठाठ सूं
धिक जावै
अै सैंग बातां-
कांई बतावै ?
जै कोई म्हारो
जवाब सुगणौ चाव
तो सै सूं पैली
म्हनें यो तो समझावै
क’ बै मिनख री
बात करै है क’
सफेद झक्क बुगला री ?