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धो कर / रणजीत
Kavita Kosh से
धो कर स्वच्छ किये रखता हूँ
मैं अपने प्रत्येक अंग को प्रतिदिन
इस प्रत्याशा में कि न जाने
कब किस झड़प के बाद अचानक
उमड़े उच्छृंखल प्यार तुम्हारा
और न जाने
इनमें से कब
किस-किस की किस्मत खुल जाए-
मिल जाए वरदान तुम्हारी
दृष्टि, स्पर्श, चुम्बन का।