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धौरी आसों हुई न गाभिन / नईम

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धौरी आसों हुई न गाभिन-
उड़द-मूँग में फली न आई,
घर-आँगन के कचनारों में
मौसम रहते कली न आई।

कब आएँगे फिर अचार-पापड़ वाले दिन?
तीर्थ-जलों को ले जाते काँवड़ वाले दिन,

कब आएँगे-
चौतरफा से खबरें आईं,
किंतु एक भी भली न आईं।

दृश्य सुखों में हुई न शामिल लोनी सूरत,
धरे रह गए पोथी-पत्रे धरे रह गए लगुन महूरत;
खुले रखे खिड़की-द्वारे सब
किंतु हवा मनचली न आई।

हमसे हुए न पीर, न हमसे हुए पयंबर,
चलने को प्रतिश्रुत हम चलते रहे निरंतर;
जनधारा में धकिया दे जो,
ऐसी कोई गली न आई।


धौरी आसों हुई न गाभिन
उड़द-मूँग में फली न आई।

घर-आँगन के कचनारों में
मौसम रहते कली न आई।