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ध्रुव तारा / जगदीश गुप्त
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एक लघु विश्वास का तारा
सदा उत्तर में उगा रहता
किसी भी प्रश्न के-
जो छोड जाती कूल पर आकाश के
तम-वाहिनी आलोक की धारा।
मार्गदर्शक-
भावना के हर बटोही का,
उलझ कर जो
नियति के, नागपाशी पंथ से हारा।
शून्य-पथ में थिरकते हर बिंदु को
देता चुनौती,
परिस्थितियों के संचल सप्तर्षियों के बीच
अब भी अडिग है वह-
आत्मबल संचित किए सारा।
एक लघु विश्वास का तारा।