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नंगे / आशुतोष सिंह 'साक्षी'
Kavita Kosh से
हम तन को कपड़ों से ढकते हैं
पर मन से हम सब हैं नंगे
पापों को पानी से धोकर
कहते हैं हर हर गंगे॥
हम ज़िन्दगी जीते उधार की
हमसे अच्छे हैं भिखमंगे
मानव रक्त हुआ सस्ता
पानी बिक रहे मँहगे॥
हर बात पे तनती तलवारें
हैं सबके हाथ लहू से रंगे
मूल्यों और आदर्शों की बातें
बस दीवारों पर हैं टँगे॥
हम तन को कपड़ों से ढकते हैं
पर मन से हम सब हैं नंगे
पापों को पानी से धोकर
कहते हैं हर हर गंगे॥