भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नंदसुत चुपकै माखन खात / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नंदसुत चुपकै माखन खात।
ठाढो चकित चहूँ दिसि चितवत, मंद-मंद मुसुकात॥
मथनी महँ कोमल कर डारे, भाजन की ठहरात।
जो पावत सो लेत ढीठ हठि, नैकहु, नाहिं डरात॥
देखति दूरि ग्वालिनीं ठाढ़ीं, मन धरिबे की घात।
स्याम-ब्रह्मा की माधुरि लीला निरखि-निरखि हरषात॥