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नंद-घरनि आनँद भरी, सुत स्याम खिलावै / सूरदास

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राग बिलावल

नंद-घरनि आनँद भरी, सुत स्याम खिलावै ।
कबहिं घुटुरुवनि चलहिंगे, कहि बिधिहिं मनावै ॥
कबहिं दँतुलि द्वै दूध की, देखौं इन नैननि ।
कबहिं कमल-मुख बोलिहैं, सुनिहौं उन बैननि ॥
चूमति कर-पग-अधर-भ्रू, लटकति लट चूमति ।
कहा बरनि सूरज कहै, कहँ पावै सो मति ॥


आनन्दमग्न श्रीनन्दरानी अपने पुत्र श्यामसुन्दर को खेला रही हैं । वे ब्रह्मा से मनाती हैं-`मेरा लाल कब घुटनों चलने लगेगा । कब अपनी इन आँखों से मैं इसके दूध की दो दँतुलियाँ (छोटे दाँत) देखूँगी । कब यह कमल-मुख बोलने लगेगा और मैं उन शब्दों को सुनूँगी ।'( प्रेम-विभोर होकर वे पुत्र के ) हाथ, चरण, अधर तथा भौहों का चुम्बन करती हैं एवं लटकती हुई अलकों को चूम लेती हैं । सूरदास ऐसी बुद्धि कहाँ से पावे, कैसे इस शोभा का वर्णन करके बतावे ।