नंद जसुदा औ गाय गोप गोपिका की कछु
बात बजभान-भौन हूँ की जनि कीजियौ ।
कहै रतनाकर कहतिं सब हा-हा खाइ
ह्याँ के परपंचनि सौं रंच न पसीजियौ ॥
आँस भरि ऐहैं और उदास मुख ह्वै हैं हाय
ब्रज-दुःख त्रास की न तातैं साँस लीजियौ ।
नाम कौ बताइ और जताइ गाम ऊधौ बस
स्याम सौ हमारी राम-आम कहि दीजियौ ॥95॥