राग बिलावल
नंद महर के भावते, जागौ मेरे बारे ।
प्रात भयौ उठि देखिऐ, रबि-किरनि उज्यारे ॥
ग्वाल-बाल सब टेरहीं, गैया बन चारन ।
लाल! उठौ मुख धीइऐ, लागी बदन उघारन ॥
मुख तैं पट न्यारौ कियौ, माता कर अपनैं ।
देखि बदन चकित भई, सौंतुष की सपनैं ॥
कहा कहौं वा रूप की, को बरनि बतावै ।
सूर स्याम के गुन अगम, नंद-सुवन कहावै ॥
भावार्थ :-- (दूसरे दिन माता जगा रही हैं -) `व्रजराज नन्द के लाड़ले, मेरे लाल! जागो, उठकर देखो तो सबेरा हो गया, सूर्यकिरणों का प्रकाश फैल गया । सब गोपबालक वन में गायें चराने के लिए पुकार रहे हैं । लाल उठो, मुख धो लो।' (यह कहकर) माता मुख खोलने लगी । माता ने अपने हाथ से मुख से वस्त्र अलग कर दिया । (मोहन का) मुख देखकर वे चकित हो गयीं, वे सम्मुख ही (आनन्द से) सो रहे थे । उस रूप (शोभा) को क्या कहूँ- कौन वर्णन कर के उसे बतला सकता है । सूरदास जी कहते हैं कि ये श्यामसुन्दर नन्द-पुत्र कहलाते हैं;किंतु इनके गुण अगम्य हैं (उन्हें जाना नहीं जा सकता )।